योग में चित्त और मन पर नियंत्रण पाने के लिए प्राणायामों का अभ्यास किया जाता है। ऐसा ही एक प्राणायाम भ्रामरी प्राणायाम है जो मन को क्रोध, निराशा, तनाव और नकारात्मकता से दूर रखता है और मन को शांत करने में सबसे प्रभावशाली प्राणायाम माना जाता है। लेकिन इसके फायदे यहीं तक सीमित नहीं है।
इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि भ्रामरी प्राणायाम क्या है, इसे कैसे किया जाता है, इसके क्या क्या फायदे है और आपको क्यों इसका अभ्यास रोजाना करना चाहिए?
भ्रामरी प्राणायाम (Bhramari Pranayama) -
इस प्राणायाम का नाम भारत में पाई जाने वाली एक विशेष प्रकार की मधुमक्खी 'भ्रामरी' के नाम पर रखा गया है, क्योंकि इस प्राणायाम हम गले द्वारा और कुछ मुद्राओं का अभ्यास करके 'भ्रामरी मधुमक्खी' जैसी ध्वनि निकालते है, जो हमारे मन का तुरंत शांति प्रदान करता है। इसलिए इस प्राणायाम को भ्रामरी प्राणायाम कहा जाता है।
भ्रामरी प्राणायाम का अभ्यास करते समय ध्वनि तरंगों में बदल जाती है और मस्तिष्क तक जाती है, जिससे मस्तिष्क की तंत्रिकाओं और नसों को काफी आराम मिलता है और मानसिक तनाव भी कम होता है। इसके फायदों के बारे में गहराई से जानते है।
भ्रामरी प्राणायाम के फायदे (Bhramari Pranayama benefits in Hindi) -
- यह मानसिक तनाव को दूर करने के साथ साथ, मन को चिंता, निराशा, क्रोध और प्रत्येक प्रकार की नकारात्मकता से दूर रखता है।
- यह प्राणायाम उत्तेजित मन को शांत करने में सहायक है।
- उच्च रक्तचाप की स्थिति में इसका अभ्यास करने से यह उसे नियंत्रित करता है।
- मस्तिष्क में रक्त संचार बनाये रखने में काफी मदद करता है।
- इस प्राणायाम के अभ्यास से एकाग्रता में वृद्धि होती है और याददाश्त भी ठीक रहती है।
- इस प्राणायाम का अभ्यास गले के आंतरिक अंगों को मजबूती प्राप्त होती है।
- इससे हमारे सुनने की क्षमता में भी वृद्धि होती है।
- इस प्राणायाम के दैनिक अभ्यास से हमारी सोचने की शक्ति में वृद्धि होती है।
भ्रामरी प्राणायाम करने की विधि (How to do Bhramari Pranayama?) -
- इस प्राणायाम का अभ्यास करने के लिए आप एक शांतिपूर्वक स्थान पर मैट बिछाकर बैठ जाए।
- आप पद्मासन की अवस्था में भी बैठ सकते है और अपनी रीढ़ को सीधा रखकर गहरी सांस ले।
- अब अपने हाथों के दोनों अंगूठो को दोनों कानो के अंदर डाले और अपनी तर्जनी उंगलियों को माथे पर और मध्यमा को अपनी आँखों पर रखे।
- अब अपने बंद मुँह से ओम (ॐ) का उच्चारण करना शुरू करें। इससे एक विशेष प्रकार की ध्वनि और तरंग उत्पन्न होगी।
- सांस समाप्त होने पर दोबारा इस ध्वनि का अभ्यास करें।
- इसका 10 से 15 बार तक अभ्यास किया जा सकता है।
- इस प्राणायाम का अभ्यास दिन के किसी भी समय खाली पेट किया जा सकता है।
सावधानियां (Precautions) -
- अत्यधिक भोजन करने पर इस प्राणायाम का अभ्यास करना वर्जित है।
- कान में किसी प्रकार चोट या रोग होने पर इस प्राणायाम को न करे।
- उच्च रक्तचाप, छाती में दर्द और गले में दर्द पर भी इस प्राणायाम का अभ्यास न करे।
- गर्भावस्था और मासिक धर्म की स्थिति में इस प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
Frequently Asked Questions -
भ्रामरी प्राणायाम क्या है?
इस प्राणायाम का नाम भारत में पाई जाने वाली एक विशेष प्रकार की मधुमक्खी 'भ्रामरी' के नाम पर रखा गया है, क्योंकि इस प्राणायाम हम गले द्वारा और कुछ मुद्राओं का अभ्यास करके 'भ्रामरी मधुमक्खी' जैसी ध्वनि निकालते है, जो हमारे मन का तुरंत शांति प्रदान करता है। इसलिए इस प्राणायाम को भ्रामरी प्राणायाम कहा जाता है।
भ्रामरी प्राणायाम कैसे किया जाता है?
इस प्राणायाम का अभ्यास करने के लिए आप एक शांतिपूर्वक स्थान पर मैट बिछाकर बैठ जाए। आप पद्मासन की अवस्था में भी बैठ सकते है और अपनी रीढ़ को सीधा रखकर गहरी सांस ले। अब अपने हाथों के दोनों अंगूठो को दोनों कानो के अंदर डाले और अपनी तर्जनी उंगलियों को माथे पर और मध्यमा को अपनी आँखों पर रखे। अब अपने बंद मुँह से ओम (ॐ) का उच्चारण करना शुरू करें। इससे एक विशेष प्रकार की ध्वनि और तरंग उत्पन्न होगी।
भ्रामरी प्राणायाम के क्या क्या फायदे है?
ये कुछ भ्रामरी प्राणायाम के रोजाना अभ्यास से मिलने वाले फायदे है।
- यह प्राणायाम उत्तेजित मन को शांत करने में सहायक है।
- उच्च रक्तचाप की स्थिति में इसका अभ्यास करने से यह उसे नियंत्रित करता है।
- मस्तिष्क में रक्त संचार बनाये रखने में काफी मदद करता है।
- इस प्राणायाम के अभ्यास से एकाग्रता में वृद्धि होती है और याददाश्त भी ठीक रहती है।
बाकि फायदों के बारे में जानने के लिए पूरा article पढ़े।
भ्रामरी प्राणायाम को कब और कैसे किया जाता है?
इस प्राणायाम को योग मैट बिछाकर, पद्मासन में बैठकर किया जा सकता है। इसका अभ्यास 5 से 10 मिनट तक ही किया जाना चाहिए, क्योंकि इतने कम समय में ही यह बहुत फायदे दे देता है। इसे खाली पेट और सुबह सुबह करना उचित होगा। आप दिन के किसी भी समय इसका अभ्यास कर सकते है, लेकिन अत्यधिक भोजन के बाद इसका अभ्यास न करे।
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निष्कर्ष -
यह प्राणायाम मुख्यतः मानसिक रोगों से मुक्ति पाने और विचारों को शुद्ध करने का एक महत्वपूर्ण प्राणायाम है। यह हमारे मन को प्रत्येक प्रकार की नकारात्मकता से दूर रखता है और नए विचारों को अपनाने में काफी मदद करता है। यह सोचने की क्षमता में भी वृद्धि करता है।
क्योंकि प्राणायाम काफी सरल होते है और इनका अभ्यास बैठकर किया जाता है, इसलिए प्रत्येक उम्र का व्यक्ति इनका अभ्यास कर सकता है और अपनी योगचर्या में इन्हें शामिल कर सकता है।
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