उद्गीथ प्राणयाम का शारीरिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार से लाभ प्राप्त होता है। इसलिए योगियों और साधको के बीच यह अत्यधिक प्रचलित है। इस प्राणायाम का अभ्यास करते समय आपको अपने विचारो से मुक्त होना पड़ता है और अपने मस्तिष्क के अंदर रिक्तता को महसूस करना है।
लोगो के अनुसार यह सिर्फ ध्यान का अभ्यास ही है। लेकिन यह आपको चिंता, नकारात्मकता, नाराजगी, उदासी और भय से निपटने में मदद करता है। इसके साथ यह रक्त संचार का संतुलन बनाये रखने में सहायक है। लेकिन इस प्राणायाम के फायदे यहीं तक सीमित नहीं है।
इस article में हम जानेंगे कि उज्जायी प्राणायाम क्या है, इसके फायदे क्या क्या है और आपको क्यों रोजाना उज्जायी प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए।
उद्गीथ प्राणयाम -
यह शब्द संस्कृत भाषा के "उद्गीथ" से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है जोर से गाना। इसमें हम सांस को छोड़ते हुए जोर से ॐ का उच्चारण करते है। इसलिए इसे ओमकारी जप के नाम से भी जाना जाता है। पतंजलि योगसूत्र के अनुसार यह तप करने के लिए सबसे सरल और महतवपूर्ण प्राणयाम माना गया है।
ॐ का उच्चारण प्राथना और साधना के लिए किया जाता है। इसका भारतीय सनातन परम्परा में विशेष स्थान है। इसके नियमित अभ्यास करने से विचारो में शुद्धता आती है।
इससे मस्तिष्क का विकास भी होता है और मस्तिष्क के सभी सामान्य विकारो से छुटकारा मिलता है। लेकिन इस प्राणायाम के फायदे यहीं तक सीमित नहीं है।
उद्गीथ प्राणायाम के फायदे।
- उद्गीथ प्राणायाम के जरिये एकाग्रता में वृद्धि की जा सकती है और मन को शांत और स्थिर रखा जा सकता है।
- आमतौर पर इसका अभ्यास प्राथना और साधना के समय किया जाता है।
- इसका अभ्यास मस्तिष्क का विकास और बुद्धि को तेज करता है।
- यह प्राणायाम अनिद्रा, तनाव, अवसाद, चिंता और सभी प्रकार की मानसिक समस्याओ से मुक्ति दिलाता है।
- यह शरीर और रक्त कोशिकाओं में oxygen की मात्रा बढ़ाने में मदद करता है।
- यह प्राणयाम हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, माइग्रेन के दर्द, मिर्गी आदि में भी लाभकारी है।
- ओम का उच्चारण करने से गले से संबंधित सभी प्रकार के रोग दूर होते है।
- इस प्राणायाम की मदद से फेफड़ों और श्वसन प्रणाली को साफ और मजबूत बनाया जा सकता है।
- यह खून को साफ करने में सहायक है।
- इससे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है।
उद्गीथ प्राणायाम करने की विधि।
- उद्गीथ प्राणायाम का अभ्यास करने से पहले पद्मासन या सुखासन ग्रहण करे।
- अपनी गर्दन और रीढ़ को सीधा रखे और शरीर के बाहरी अंगो को ढीला छोड़ दे।
- इसके पश्चात ज्ञान मुद्रा अपने हाथो द्वारा बना ले। (तर्जनी और अंगूठे को मिलाकर)
- अब धीरे धीरे सांस को अंदर ले और स्वास छोड़ते हुए ओम का उच्चारण करे।
- अपने पुरे शरीर में ओम के कंपन को महसूस करे।
- इस प्राणायाम का 10 से 15 मिनट तक आसानी से अभ्यास किया जा सकता है।
सावधानिया।
- इस आसन को सुबह सुबह करने से अत्यधिक ;लाभ प्राप्त होता है।
- इसका अभ्यास सिर्फ योग मैट पर ही करे।
- आप धीरे धीरे ही इस प्राणायाम की अवधि को बढ़ाये , तो बेहतर है।
Frequently Asked Question –
उद्गीथ प्राणायाम क्या है?
यह शब्द संस्कृत भाषा के "उद्गीथ" से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है जोर से गाना। इसमें हम सांस को छोड़ते हुए जोर से ॐ का उच्चारण करते है। इसलिए इसे ओमकारी जप के नाम से भी जाना जाता है। पतंजलि योगसूत्र के अनुसार यह तप करने के लिए सबसे सरल और महतवपूर्ण प्राणयाम माना गया है।
उद्गीथ प्राणायाम कैसे किया जाता है?
- उद्गीथ प्राणायाम का अभ्यास करने से पहले पद्मासन या सुखासन ग्रहण करे।
- अपनी गर्दन और रीढ़ को सीधा रखे और शरीर के बाहरी अंगो को ढीला छोड़ दे।
- इसके पश्चात ज्ञान मुद्रा अपने हाथो द्वारा बना ले। (तर्जनी और अंगूठे को मिलाकर)
- अब धीरे धीरे सांस को अंदर ले और स्वास छोड़ते हुए ओम का उच्चारण करे।
- अपने पुरे शरीर में ओम के कंपन को महसूस करे।
उद्गीथ प्राणायाम के क्या फायदे है?
ये कुछ उद्गीथ प्राणायाम के रोजाना अभ्यास से मिलने वाले फायदे है।
- यह शरीर और रक्त कोशिकाओं में oxygen की मात्रा बढ़ाने में मदद करता है।
- यह प्राणयाम हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, माइग्रेन के दर्द, मिर्गी आदि में भी लाभकारी है।
- ओम का उच्चारण करने से गले से संबंधित सभी प्रकार के रोग दूर होते है।
- इस प्राणायाम की मदद से फेफड़ों और श्वसन प्रणाली को साफ और मजबूत बनाया जा सकता है।
बाकि फायदों के बारे में जानने के लिए पूरा article पढ़े।
उद्गीथ प्राणायाम कब और कितने समय तक करना चाहिये?
आमतौर पर इस प्राणायाम का अभ्यास सुबह सुबह करना ही सबसे बेहतर माना जाता है लेकिन आप इसे शाम को कर सकते है। यह आमतौर पर 10 से 20 मिनट तक किया जा सकता है और आप अपने अनुसार इसकी समय सीमा बड़ा सकते है।
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निष्कर्ष।
प्राणायामों में यह सबसे महतवपूर्ण और सरल प्राणायाम है। क्योकि इसमें ओम का उच्चारण निहित है, इसलिए इसका योग में एक विशेष स्थान है। यही कारण है कि साधको के बीच बहुत प्रचलित है।
आप इस प्राणायाम का अभ्यास सुबह सुबह करे तो उचित है और प्रत्येक व्यक्ति इस प्राणायाम का अभ्यास कर सकता है।
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